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Showing posts from October, 2022

हनुमान चालीसा

  हनुमान चालीसा की रचना तुलसीदास जी ने अवधी भाषा में की थी।   ।। दोहा ।। श्रीगुरु चरन सरोज रज, निजमन मुकुरु सुधारि। बरनउं रघुबर बिमल जसु, जो दायक फल चारि।। बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन-कुमार। बल बुधि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार।। ।। चौपाई ।। जय हनुमान ज्ञान गुन सागर। जय कपीस तिहुं लोक उजागर।।  1 राम दूत अतुलित बल धामा। अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा।। महाबीर बिक्रम बजरंगी। कुमति निवार सुमति के संगी।। कंचन बरन बिराज सुबेसा। कानन कुण्डल कुँचित केसा।। हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजे। कांधे मूंज जनेउ साजे।। शंकर सुवन केसरी नंदन। तेज प्रताप महा जग वंदन।। बिद्यावान गुनी अति चातुर। राम काज करिबे को आतुर।। प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया। राम लखन सीता मन बसिया।। सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा। बिकट रूप धरि लंक जरावा।। भीम रूप धरि असुर संहारे। रामचन्द्र के काज संवारे।। लाय सजीवन लखन जियाये। श्री रघुबीर हरषि उर लाये।। रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई। तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई।। सहस बदन तुम्हरो जस गावैं। अस कहि श्रीपति कण्ठ लगा...

श्री काली चालीसा

                                                           ॥ दोहा ॥ जयकाली कलिमलहरण, महिमा अगम अपार । महिष मर्दिनी कालिका , देहु अभय अपार ॥ ॥ चौपाई ॥ रि मद मान मिटावन हारी। मुण्डमाल गल सोहत प्यारी ॥   1  अष्टभुजी सुखदायक माता। दुष्टदलन जग में विख्याता ॥ भाल विशाल मुकुट छवि छाजै। कर में शीश शत्रु का साजै ॥ दूजे हाथ लिए मधु प्याला। हाथ तीसरे सोहत भाला ॥ चौथे खप्पर खड्ग कर पांचे। छठे त्रिशूल शत्रु बल जांचे ॥ सप्तम करदमकत असि प्यारी। शोभा अद्भुत मात तुम्हारी ॥ अष्टम कर भक्तन वर दाता। जग मनहरण रूप ये माता ॥ भक्तन में अनुरक्त भवानी। निशदिन रटें ॠषी-मुनि ज्ञानी ॥ महशक्ति अति प्रबल पुनीता। तू ही काली तू ही सीता ॥ पतित तारिणी हे जग पालक। कल्याणी पापी कुल घालक ॥ शेष सुरेश न पावत पारा। गौरी रूप धर्यो इक बारा ॥ तुम समान दाता नहिं दूजा। विधिवत करें भक्तजन पूजा ॥ रूप भयंकर जब तुम धारा। दुष्टदलन कीन्हेहु संहारा ॥ नाम अनेकन मात तुम्हारे। भक...